भारत के कई राज्यों में आज भी दहेज़ की माँग की जाती है, जो कानून के खिलाफ है। दहेज़ की माँग करना और देना दोनों ही गैरकानूनी है, लेकिन फिर भी लोग इस अधिकार का उपयोग करते हैं। विशेष रूप से बिहार में, लड़के की पकड़ के बिना शादी की तारीख तय नहीं की जाती है, जब तक कि लड़के के पक्ष से की गई माँग पूरी नहीं होती। अगर लड़की पढ़ी-लिखी है और काम कर रही है, तो भी लड़के के पक्ष दहेज़ की माँग करते हैं। माता-पिता भी लड़के के पक्ष की हर माँग को पूरा करते हैं।
हालांकि, समय के साथ कुछ लोगों के विचार में बदलाव आया है। सोशल मीडिया पर मिथिलांचल के एक वीडियो शेयर किया गया जिसमें एक लड़के ने जयमाला के बाद दहेज़ में बाइक की माँग की। लड़के का कठोर इरादा था कि अगर उसे बाइक नहीं मिली, तो वह शादी नहीं करेगा। लेकिन लड़की के पिता ने इस माँग का जवाब दिया, जिसकी उन्होंने खुद करारी बात की और उसे वायरल कर दिया।
वीडियो में यह दिखाया गया कि जब लड़का दहेज़ के रूप में बाइक की माँग करता है, तो लड़की के पिता ने उसके हाथ में चप्पल लेकर लड़के की पिटाई की। इस संघर्ष के बाद लड़की के पिता ने कहा कि वह जमीन बेचकर उसे बाइक दिलवा सकते हैं।
यह घटना एक बड़े संघर्ष को दर्शाती है, जो भारतीय समाज में अभी भी दहेज़ की माँग के खिलाफ लड़ रहा है। दहेज़ की माँग समाज में एक असही बुराई के रूप में जानी जाती है, जो लड़की के परिवार को अत्यधिक आर्थिक और आत्मिक दबाव में डाल देती है। इसके बावजूद, यह प्रथा भारतीय समाज में गहरी जड़ें फूटने से रोक नहीं पाई है।
दहेज़ की माँग को बढ़ावा देने वाले लोग अक्सर सोशल मीडिया और अन्य माध्यमों के माध्यम से अपनी माँग को जताते हैं, जो कई बार घोर रूप में दुर्भाग्यपूर्ण होता है। इसे रोकने के लिए समाज को मिलकर कड़ी कदम उठाने की आवश्यकता है, ताकि हर व्यक्ति का अधिकारिक और आत्मनिर्भर जीवन हो सके।
दहेज़ की माँग के प्रति समाज में अदालती संवेदनशीलता बढ़ रही है, लेकिन फिर भी इस प्रथा को पूरी तरह से खत्म करने में समाज को लंबा समय लग सकता है। दहेज़ की माँग के कारण लड़कियों की शिक्षा और करियर को प्रभावित होता है, जो समाज के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा है।
इस समस्या को हल करने के लिए, सरकारों को कड़ी कानूनी कार्रवाई करने की आवश्यकता है, साथ ही समाज को जागरूकता और शिक्षा के माध्यम से दहेज़ की प्रथा के खिलाफ लड़ने की दिशा में प्रोत्साहित करना चाहिए। आम जनता को भी इस मुद्दे पर सक्रिय रूप से बातचीत करना चाहिए ताकि दहेज़ की प्रथा को समाज से उखाड़ फेंका जा सके।
इसके अलावा, जन-जन को यह जागरूक कराया जाना चाहिए कि एक बिना दहेज़ की शादी भी सम्पन्न हो सकती है और यह समाज में समानता और समाजिक न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है।
दहेज़ की प्रथा को खत्म करने के लिए समाज को स्त्रियों के सम्मान और स्वतंत्रता को समझने की आवश्यकता है। समाज को साक्षरता और शिक्षा के माध्यम से लड़कियों की शिक्षा को प्रोत्साहित करना चाहिए। इसके लिए सरकारी योजनाओं को बढ़ावा देना चाहिए जो लड़कियों को पढ़ाई करने और स्वावलंबी बनने की प्रेरणा प्रदान करें। इससे समाज में दहेज़ की प्रथा को समाप्त करने में मदद मिलेगी और स्त्रियों को समाज में समानता का सही स्थान प्राप्त होगा।