ताजमहल: तेजोलिंग महादेव मंदिर का दावा फिर उठा, क्या है विवाद

आगरा: ताजमहल, मुगल सम्राट शाहजहाँ द्वारा अपनी पत्नी मुमताज महल की याद में बनवाया गया एक भव्य मकबरा, एक बार फिर विवादों में घिर गया है। सिविल जज जूनियर डिवीजन शिखा सिंह की अदालत में एक वाद दाखिल किया गया है, जिसमें ताजमहल को तेजोलिंग महादेव मंदिर बताया गया है।

वाद में भगवान तेजो महादेव, योगेश्वर श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ ट्रस्ट, क्षेत्रीय शक्तिपीठ विकास ट्रस्ट और अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह वादी हैं। प्रतिवादी के तौर पर संस्कृति मंत्रालय के सचिव, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक और अधीक्षक पुरातत्वविद, उत्तर प्रदेश पर्यटन के महानिदेशक को बनाया गया है।

अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह का दावा:

अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह का दावा है कि ताजमहल मूल रूप से तेजोलिंग महादेव मंदिर था, जिसे शाहजहाँ ने तोड़कर मकबरा बनवा दिया था। उन्होंने कहा कि 1 जनवरी 2023 को उन्होंने वाद दाखिल किया था। न्यायालय ने धारा 80 (1) (सिविल प्रक्रिया संहिता) की कार्रवाई पूरी करने को कहा था। विपक्षियों को धारा 80(1) के तहत नोटिस भेजे गए थे। इसकी दो माह की समय सीमा गुजरने के बाद वाद दाखिल किया गया है।

आरटीआई का सहारा:

अधिवक्ता सिंह ने बताया कि उन्होंने साल 2023 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण से सूचना का अधिकार के तहत जानकारी मांगी थी। एएसआई ने बताया कि इसके लिए ताजमहल की वेबसाइट व संबंधित पुस्तकों को पढ़ सकते हैं। इसके बाद उन्होंने बाबरनामा, हुमायूं नामा, रॉयल एशियाटिक सोसाइटी ऑफ़ बंगाल, ASI के बुलेटिन, एपीग्राफिका इंडिका, विश्वकर्मा प्रकाश, पुराण पढ़े। उनके माध्यम से वह कह सकते हैं कि ताजमहल का अस्तित्व शाहजहाँ से पूर्व का है। यह मूल रूप से तेजो लिंग महादेव का मंदिर है।

अगली सुनवाई:

इस पूरे मामले में 9 अप्रैल को अगली सुनवाई होगी। यह देखना दिलचस्प होगा कि अदालत इस दावे पर क्या फैसला सुनाती है।

Taj Mahal: Claim of Tejolinga Mahadev temple raised again
Taj Mahal: Claim of Tejolinga Mahadev temple raised again

विवाद का इतिहास:

यह पहली बार नहीं है जब ताजमहल को लेकर विवाद उठा है। 1970 और 1980 के दशक में भी इस मुद्दे पर बहस हुई थी। 2000 के दशक में, कुछ हिंदू संगठनों ने ताजमहल को हिंदुओं को वापस सौंपने की मांग की थी।

अयोध्या विवाद के बाद अब ताजमहल! पिछले कुछ समय से देश में ऐतिहासिक स्थलों को लेकर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहे हैं. हाल ही में, आगरा स्थित भव्य ताजमहल को लेकर एक नया दावा सामने आया है. सिविल जज जूनियर डिवीजन शिखा सिंह की अदालत में दायर वाद में ताजमहल को तेजोलिंग महादेव मंदिर बताया गया है. आइए इस दावे से जुड़े विभिन्न पहलुओं को गहराई से समझने का प्रयास करें.

वादी का दावा क्या है?

अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह ने दावा किया है कि ताजमहल मूल रूप से भगवान शिव का तेजोलिंग महादेव मंदिर था. उन्होंने यह भी कहा है कि उनके पास इस बात के पर्याप्त सबूत हैं. उन्होंने दावा किया है कि उन्होंने सूचना का अधिकार अधिनियम (RTI) के तहत भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) से जानकारी मांगी थी. जवाब में एएसआई ने उन्हें वेबसाइट और पुस्तकों को देखने का सुझाव दिया. इसके बाद उन्होंने मुगलकालीन इतिहास से जुड़े कई ग्रंथों का अध्ययन किया, जिनमें बाबरनामा, हुमायूंनामा, रॉयल एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल के जर्नल, एएसआई बुलेटिन, एपिग्राफिया इंडिका, विश्वकर्मा प्रकाश और पुराण शामिल हैं. इन ग्रंथों के अध्ययन के आधार पर उनका दावा है कि ताजमहल का अस्तित्व शाहजहां से भी पहले का है.

क्या है दावा करने का आधार?

अधिवक्ता सिंह का दावा किन तथ्यों पर आधारित है, यह अभी स्पष्ट नहीं है. उनका कहना है कि उनके अध्ययन से उन्हें यह लगा कि मुगलों ने इस मंदिर को तोड़-फोड़कर उसे मकबरे में बदल दिया था. हालांकि, उन्होंने अभी तक इस दावे के समर्थन में कोई ठोस सबूत पेश नहीं किए हैं.

क्या यह पहला विवाद है?

नहीं, ताजमहल को लेकर यह पहला विवाद नहीं है. 1970 और 1980 के दशक में भी इसी तरह के दावे किए गए थे. 2000 के दशक में भी कुछ हिंदू संगठनों ने ताजमहल को हिंदुओं को सौंपने की मांग की थी. लेकिन, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (ASI) ने हमेशा इस दावे को खारिज किया है. एएसआई का कहना है कि उनके पास इस बात के पर्याप्त दस्तावेज हैं कि ताजमहल को मुगल सम्राट शाहजहाँ ने अपनी पत्नी मुमताज महल की याद में बनवाया था.

अदालत का फैसला अहम

अगली सुनवाई 9 अप्रैल को होनी है. यह देखना होगा कि अदालत इस मामले में क्या फैसला सुनाती है. अदालत का फैसला ना सिर्फ इस विवाद को सुलझाने में मदद करेगा, बल्कि यह ऐतिहासिक स्थलों से जुड़े भविष्य के विवादों के लिए भी एक मिसाल कायम करेगा.

इतिहास और धरोहर की रक्षा जरूरी

इस पूरे विवाद के बीच यह बात ध्यान देने योग्य है कि ताजमहल विश्व प्रसिद्ध धरोहर है. यह भारत की समृद्ध संस्कृति और इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. ऐसे में जरूरी है कि हम इतिहास के तथ्यों की रक्षा करें और इस तरह के विवादों का राजनीतिकरण ना होने दें.

निष्कर्ष:

ताजमहल भारत के सबसे प्रतिष्ठित स्मारकों में से एक है। यह विवाद इस स्मारक के महत्व और इतिहास को लेकर बहस को जन्म देता है। अदालत का फैसला इस बहस को सुलझाने में मदद कर सकता है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top