भोपाल: नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) लागू होने से भोपाल में रह रहे 800 से अधिक पाकिस्तानी नागरिकों को नागरिकता मिलने का रास्ता साफ हो गया है। अब तक 252 नागरिकों को भारत की नागरिकता दी जा चुकी है।
नागरिकता देने का अधिकार:
मध्य प्रदेश में नागरिकता देने का अधिकार सिर्फ भोपाल और इंदौर कलेक्टर के पास है। तत्कालीन कलेक्टर आशीष सिंह ने 17 पाकिस्तानी नागरिकों को भारत की नागरिकता का प्रमाण पत्र दिया था।
सीएए से मिलेगी नागरिकता:
सीएए के तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता मिलने का रास्ता साफ हो गया है।
कौन दे सकता है नागरिकता:
देश के सिर्फ 16 जिलों के कलेक्टरों को नागरिकता देने का अधिकार है। मध्य प्रदेश में यह अधिकार भोपाल और इंदौर कलेक्टर के पास हैं।
कलेक्टर का कहना:
शहर में रह रहे अन्य देशों के नागरिकों पर पुलिस और प्रशासन द्वारा नजर रखी जाती है। उनसे संबंधित आइबी की रिपोर्ट सहित अन्य डाटा मिलने के बाद नियमानुसार नागरिकता के प्रमाण पत्र दिए जाते हैं।
सीएए के तहत नागरिकता प्राप्त करने की प्रक्रिया और पात्रता
सीएए के तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों के गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान है। इसके लिए कुछ योग्यताएं निर्धारित की गई हैं
- आवेदक दिसंबर 2014 से पहले भारत आया हो: सीएए के तहत नागरिकता पाने के लिए यह जरूरी है कि आवेदक दिसंबर 16, 2014 से पहले भारत में प्रवेश कर चुका हो।
- प्र persecuted धार्मिक अल्पसंख्यक होना: आवेदक को यह साबित करना होगा कि वे पाकिस्तान, बांग्लादेश या अफगानिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न का सामना कर रहे थे। इसके लिए वे सरकारी दस्तावेज, पुलिस रिपोर्ट या किसी मान्यता प्राप्त संगठन के प्रमाण पत्र जमा कर सकते हैं।
- भारत में न्यूनतम निवास अवधि पूरी करना: सीएए के तहत आवेदक को भारत में कम से कम 11 साल रहना जरूरी है। हालांकि, अगर वे ये साबित कर दें कि उन्हें धार्मिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ा था, तो यह अवधि घटाकर छह साल भी हो सकती है।
- भारतीय संविधान और कानून का पालन करना: नागरिकता प्राप्त करने के लिए आवेदक को यह शपथ लेना होगा कि वे भारतीय संविधान और कानून का पालन करेंगे।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि सीएए किसी भी भारतीय नागरिक को नागरिकता से वंचित नहीं करता है और न ही किसी मौजूदा कानून को खत्म करता है। यह केवल उन गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता का रास्ता प्रदान करता है जो धार्मिक उत्पीड़न का सामना कर रहे हैं।
सीएए के पक्ष और विपक्ष
नागरिकता संशोधन कानून को लेकर देश में काफी बहस हुई है। इसके समर्थकों का कहना है कि:
- धार्मिक रूप से उत्पीड़ित लोगों को राहत: यह कानून पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों के लाखों शरणार्थियों को राहत प्रदान करता है जो धार्मिक उत्पीड़न का सामना कर रहे हैं।
- भारत की धर्मनिरपेक्ष छवि बनाए रखना: सीएए के समर्थक मानते हैं कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है और यह कानून धार्मिक उत्पीड़न के शिकार लोगों को शरण देने की भारत की परंपरा को बनाए रखता है।
वहीं, सीएए के विरोधियों का कहना है कि:
- भेदभावपूर्ण कानून: सीएए को भेदभावपूर्ण माना जाता है क्योंकि यह मुस्लिम शरणार्थियों को शामिल नहीं करता है। उनका तर्क है कि धर्म के आधार पर नागरिकता नहीं दी जानी चाहिए।
- संविधान का उल्लंघन: आलोचकों का कहना है कि सीएए भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है जो समानता का अधिकार देता है।
- पूर्वोत्तर राज्यों में विरोध: पूर्वोत्तर राज्यों में सीएए का विरोध हुआ है क्योंकि वहां के लोग मानते हैं कि इससे उनकी संस्कृति और जनजातीय आबादी खतरे में पड़ सकती है।
सीएए का भोपाल के पाकिस्तानी नागरिकों पर प्रभाव
सीएए भोपाल में रह रहे पाकिस्तानी हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों के कई नागरिकों के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है। अब तक जिन 252 पाकितानी नागरिकों को नागरिकता दी जा चुकी है, उनमें से अधिकांश इन समुदायों से ही ताल्लुक रखते हैं। सीएए के तहत
निष्कर्ष:
सीएए लागू होने से भोपाल में रह रहे पाकिस्तानी नागरिकों को नागरिकता मिलने का रास्ता साफ हो गया है। यह उनके लिए एक बड़ी राहत है।