मथुरा शाही ईदगाह मस्जिद विवाद: एक अप्रैल तक टली सुनवाई, जानिए विवाद की जटिलता

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने बुधवार को मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने की मांग वाली याचिका की पोषणीयता को चुनौती देने के संबंध में दायर याचिका पर सुनवाई एक अप्रैल तक के लिए टाल दी। मूल वाद में दावा किया गया है कि शाही ईदगाह मस्जिद, कटरा केशव देव मंदिर की 13.37 एकड़ भूमि पर बनाई गई है।

मुस्लिम पक्ष की आपत्ति

सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष ने वादी आशुतोष पांडेय द्वारा दीवानी प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) की धारा 151 के तहत किए गए आवेदन पर आपत्ति जताई। इस आवेदन में कहा गया है कि हर साल विवादित संपत्ति परिसर में हिंदू भक्तों द्वारा “बासोड़ा पूजा” की जाती है। इस वर्ष यह पूजा एक अप्रैल 2024 को माता शीतला सप्तमी को और दो अप्रैल 2024 को माता शीतला अष्टमी को पड़ेगी। इन तिथियों पर पूर्व की तरह बासोड़ा पूजा की जानी है, जबकि प्रतिवादी कृष्ण कूप में यह पूजा करने से वादकारियों को रोक रहे हैं।

मुस्लिम पक्ष ने कहा कि वाद की पोषणीयता को लेकर दाखिल आवेदन पर सुनवाई लंबित रहने के दौरान ऐसे आवेदन पर कोई आदेश पारित करने की आवश्यकता नहीं है।

हिंदू पक्ष की दलील

दूसरी ओर, हिंदू पक्ष की ओर से दलील दी गई कि हिंदुत्व में आस्था रखने वाले लोगों को पूजा अर्चना करने की स्वतंत्रता दी जानी चाहिए। ऐसा आवेदन हमेशा से ही पोषणीय है और इस पर आदेश पारित करना अदालत के विवेकाधिकार पर निर्भर है।

एक अन्य वाद में भी आवेदन दाखिल कर हिंदू भक्तों को कृष्ण कूप पर पूजा करने से नहीं रोकने का मुस्लिम समुदाय को निर्देश जारी करने की मांग की गई। इस आवेदन का भी मुस्लिम पक्ष द्वारा यह कहते हुए विरोध किया गया कि यह वक्फ बोर्ड की संपत्ति है और आवेदन पोषणीय नहीं है।

न्याय मित्र को हटाने की मांग

हिंदू पक्ष की ओर से पेश हुए अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने मुस्लिम पक्ष के उस आवेदन का विरोध किया जिसमें इस मामले में अदालत के 17 जनवरी के आदेश पर न्याय मित्र के तौर पर नियुक्त मनीष गोयल को हटाने की मांग की गई है। जैन ने कहा कि ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि एक सरकारी अधिवक्ता को न्याय मित्र नहीं नियुक्त किया जा सकता। गोयल उत्तर प्रदेश राज्य के अपर महाधिवक्ता हैं।

Mathura Shahi Idgah Mosque
Mathura Shahi Idgah Mosque

अगली सुनवाई

इस मामले में अब अगली सुनवाई एक अप्रैल को होगी।

यह विवाद 1968 से चल रहा है

यह विवाद 1968 से चल रहा है जब रंजीत लाल शर्मा ने दावा किया था कि शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण श्री कृष्ण जन्मभूमि पर किया गया था। उन्होंने मस्जिद को हटाने और जमीन को हिंदुओं को सौंपने की मांग की थी।

इतिहास और आस्था का टकराव

यह विवाद इतिहास और आस्था के टकराव का भी उदाहरण है। हिंदू पक्ष का दावा है कि विवादित स्थल भगवान कृष्ण के जन्मस्थान पर स्थित है, वहीं मुस्लिम पक्ष का कहना है कि शाही ईदगाह मस्जिद सैकड़ों साल पुरानी है और उसका धार्मिक महत्व कम नहीं किया जा सकता।

पूजा का अधिकार बनाम संपत्ति का अधिकार

मामले का एक पहलू पूजा के अधिकार और संपत्ति के अधिकार के बीच का टकराव भी है। हिंदू पक्ष का दावा है कि उन्हें विवादित स्थल पर पूजा करने का अधिकार है, जबकि मुस्लिम पक्ष का कहना है कि यह उनकी वक्फ संपत्ति है और उन्हें इस पर पूरा अधिकार है।

समाधान की जटिलता

इन सभी जटिलताओं के कारण इस मामले का समाधान आसान नहीं दिखता। आगामी सुनवाई में कोर्ट किस तरह से इन पेचीदगियों को सुलझाता है, इस पर सबकी निगाहें टिकी रहेंगी। यह विवाद न केवल मथुरा बल्कि पूरे देश में धार्मिक स्थलों से जुड़े मामलों को लेकर चल रही बहस को भी हवा देता है।

यह मामला 2020 में सुर्खियों में आया जब हिंदू महासभा ने मस्जिद को हटाने की मांग को लेकर एक याचिका दायर की।

यह मामला भारत में धार्मिक विवादों की एक लंबी श्रृंखला में नवीनतम है।

यह देखना बाकी है कि अदालत इस मामले में क्या फैसला सुनाती है।

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